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Location: JAGADGURU RAMANANDCHARYA RAJASTHAN SANSKRIT UNIVERSITY, VILL. MADAU, POST BHANKROTA, JAIPUR, 302001, Jaipur, Rajasthan, India
Phone: 0141-5132021, 0141-5132001
Email: jrrsu@yahoo.com
Website: www.jrrsanskrituniversity.ac.in

Jagadguru Ramanandacharya Rajasthan Sanskrit University

जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय

एक विहङ्गम दृष्टि

    अनादिकाल से भारत देश ज्ञानोपासना का केन्द्र रहा है । यह शाब्दी साधना ऋषियों के अनहद में मुखरित होती हुई साक्षात् श्रुति-स्वरूप में इस धरा पर अवतीर्ण हुई ।  यह विश्वविदित तथ्य है कि ऋग्वेद मानव के पुस्तकालय की सर्वप्रथम् पुस्तक है ।  ऋचाओं की अर्चना, सामगानों की झंकृति, यजुर्मन्त्रों के यजन तथा आथर्वणों के शान्ति-कर्मों  से भारतीय प्रज्ञा पल्लवित और पुष्पित हुई । वेदों की श्रुति - परम्परा ने अपने ज्ञान का प्रसार करते हुए उपनिषद्, अष्टादश पुराण, शिक्षा-कल्प-निरुक्त-व्याकरण-ज्योतिष-छन्द, योगतन्त्र, षडदर्शन, रामायण, महाभारत, ललित काव्य, नीतिकाव्य आदि का अमूल्य वाङ्मय सर्वजनहिताय, सर्वजनसुखाय विश्व को दिया । श्रमण परम्परा का बहुमूल्य वाङ्गमय भी संस्कृत में निहित है ।  इस बहुआयामी साहित्य के विकास के फलस्वरूप भारतीयों की प्रसिद्धि अग्रजन्मा के रूप में हुई तथा वेदों का ज्ञान भारतीय मनीषा का पर्याय बन गया ।  इस प्रकार भारतीय संस्कृति की संवाहिका होने का गौरव संस्कृत भाषा को जाता है ।

    संस्कृत के इस विशाल वाङ्मय की कालजयिता का यही रहस्य है कि सहस्त्राब्दियों से गुरुकुलों और ऋषिकुलों आदि में इसका अध्यापन होता रहा ।  इस गुरुशिष्य-परम्परा को सुनियोजित रूप देते हुए संस्कृत के अनेक अध्ययन केन्द्र देश भर में चलते रहे उसी परम्परा में ही 20 वीं सदी में अनेक संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित हुए ।  उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा, केरल, आंध्रप्रदेश आदि में संस्कृत विश्वविद्यालय विगत कई वर्षों से चल रहे थे ।  इसी क्रम में राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु वर्षों से चल रहा प्रयास वर्ष 2001 में सफल हुआ ।

    सम्पूर्ण संस्कृत वाङ्मय के साङ्गोपाङ्ग अध्ययन और अध्यापन का संचालन करने, सतत विशेषज्ञीय अनुसंधान और उससे आनुषंगिक अन्य विषयों की व्यवस्था करने तथा संस्कृत वाङ्मय में निहित  ज्ञान-विज्ञान की अनुसंधान पर आधारित सरल वैज्ञानिक पद्धति से व्यावहारिक व्याख्या प्रस्तुत करने के साथ ही अन्य महत्त्वपूर्ण अनुसंधानों के परिणामों और उपलब्धियों को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से राजस्थान राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम 1998 (1998 का अधिनियम 10) की अनुमति महामहिम राज्यपाल महोदय द्वारा दिनांक 2-9-1998 को दीगई ।

    दिनांक 6 फरवरी, 2001 को राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय ने मूर्त्त रूप लिया जिसके प्रथम कुलपति पद्मश्री डॉ. मण्डन मिश्र नियुक्त किये गये । 

     उपशासन सचिव, शिक्षा (ग्रुप - 6) द्वारा जारी आदेश क्र.प.(1) शिक्षा - 6/2000 दिनांक 27-06-2005 के अनुसार दिनांक 27-06-2005 से विश्वविद्यालय का नाम जगद्गुरू रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर कर दिया गया है ।

मुख्योद्देश

  • विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से संस्कृत वाङ्मय के ज्ञान की शिक्षा देना ।
  • संस्कृत वाङ्मय और उसकी विभिन्न शाखाओं में अनुसंधान कार्य आरम्भ करना और उसका अभिवर्धन करना ।
  • संस्कृत वाङ्मय में विस्तारी शिक्षा - कार्यक्रम हाथ में लेना ।
  • संस्कृत महाविद्यालय के अध्यापकों को, उनके ज्ञान को अद्यतन करने के लिए प्रशिक्षण देना ।
  • शिक्षण - रीति - विज्ञान और शिक्षण-शास्त्र के अध्यापन में विशेषतः परिकल्पित अभिसंस्करण कार्यक्रम आयोजित करना ।
  • पाठ्यक्रमों का आधुनिकीकरण करना और परीक्षा सुधार से सम्बन्धित कार्य हाथ में लेना और ऐसे अन्य कार्यों, क्रियाकलापों या परियोजनाओं को जो विश्वविद्यालय के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से उचित हैं जिनके लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है, का सम्‍यक् संचालन करना।

दृष्टि पत्र

महामहिम कुलाधिपति महोदय की अध्यक्षता में 08-09-2004 को सम्पन्न कुलपति समन्वय समिति के कार्यवृत्त के बिन्दु 11 के अनुसार विश्वविद्यालय के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु और समाज की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं एवं उत्तम शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने की दृष्टि से विश्वविद्यालय के योजना और परिनिरीक्षण बोर्ड ने पांच वर्षीय दृष्टि पत्र (VISION DOCUMENT) तैयार किया ।  माननीय शिक्षा मंत्री श्री घनश्याम तिवाड़ी ने उसका अनुमोदन किया ।






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